परिचय
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में 1 सितम्बर 1994 का दिन हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन खटीमा (उधम सिंह नगर) में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां बरसा दीं। यह घटना बाद में “खटीमा गोलीकांड” के नाम से जानी गई और इसने पूरे राज्य में आक्रोश की लहर पैदा कर दी।
खटीमा गोलीकांड की घटना
1 सितम्बर 1994 को हजारों छात्र, किसान और आम लोग अलग राज्य की मांग को लेकर खटीमा में शांतिपूर्ण जुलूस निकाल रहे थे। आंदोलनकारी अपनी मांगों को शासन-प्रशासन तक पहुँचाना चाहते थे।
लेकिन अचानक पुलिस ने आंदोलनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया और उसके बाद सीधी गोलीबारी शुरू कर दी।
इस गोलीकांड में कई आंदोलनकारी मौके पर ही शहीद हो गए, जबकि दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
शहीदों का बलिदान
खटीमा गोलीकांड में शहीद हुए लोगों ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन की नींव को और मजबूत किया। उनके बलिदान ने पूरे पहाड़ और मैदानी इलाकों को एकजुट कर दिया। इस घटना ने राज्य आंदोलन को नई दिशा और गति दी, जिसका परिणाम 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड राज्य के गठन के रूप में सामने आया।खटीमा गोलीकांड (1 सितम्बर 1994) में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में कई आंदोलनकारी शहीद हुए थे।
प्रमुख शहीदों के नाम इस प्रकार हैं:
- राम दत्त पंत
- प्रकाश पंत
- भगवती प्रसाद जोशी
- लीलाधर तिवारी
- चन्द्रमोहन उपाध्याय
- अमरजीत सिंह
- रामेश्वर दत्त
👉 इन्हीं आंदोलनकारियों की शहादत ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन को और अधिक तीव्र कर दिया था।
खटीमा गोलीकांड का महत्व
- यह उत्तराखंड आंदोलन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
- इसने पूरे राज्य में लोगों को एकजुट कर दिया।
- आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।
- शहीदों के बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा दी।
आज की स्थिति
हर साल 1 सितम्बर को खटीमा गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। उत्तराखंड के लोग इस दिन को शहादत दिवस के रूप में याद करते हैं।